छायावाद
हिंदी साहित्य के आधुनिक चरण में द्विवेदी युग के पश्चात् हिंदी काव्य की जो धारा विषय वस्तु की दृष्टि से स्वछंद प्रेमभावना, प्रकृति में मानवीय क्रिया-कलापों तथा भाव-व्यापारों के आरोपण और कला की दृष्टि से लाक्षणिकता प्रधान नवीन अभिव्यंजना पद्धति को लेकर चली, उसे ‘छायावाद’ कहा गया। डॉक्टर नगेंद्र के अनुसार, ‘स्थूल के प्रति सूक्ष्म के विद्रोह’ को छायावाद माना जाना है। प्रकृति पर चेतना के आरोप को भी छायावाद कहा गया है।